महाकल्प
From जैनकोष
अंगबाह्य प्रकीर्णक (श्रुतज्ञान) के चौदह भेदों में ग्यारहवाँ भेद । इसमें यति के द्रव्य, क्षेत्र तथा काल के योग्य कार्यों का वर्णन है । हरिवंशपुराण 2.104, 10. 125, 136
अंगबाह्य प्रकीर्णक (श्रुतज्ञान) के चौदह भेदों में ग्यारहवाँ भेद । इसमें यति के द्रव्य, क्षेत्र तथा काल के योग्य कार्यों का वर्णन है । हरिवंशपुराण 2.104, 10. 125, 136