महापद्म
From जैनकोष
(1) अवसर्पिणी काल का नौवाँ चक्रवर्ती । यह हस्तिनापुर के राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का पुत्र था । इसकी आठ पुत्रियाँ थी । विद्याधर इसको आठों पुत्रियों को हरकर ले गये थे । इससे विरक्त होकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य देकर इसके पुत्र विष्णु के साथ दीक्षा धारण कर की थी तथा केवलज्ञान प्राप्त कर अन्त में सिद्ध पद प्राप्त किया था । बलि आदि इसी के मन्त्रियों ने अकम्पनाचार्य आदि मुनियों पर उपसर्ग किया था । इसकी आयु तीस हजार वर्ष की थी । इसमें इसके पाँच सौ वर्ष कुमार अवस्था में, पाँच सौ वर्ष मण्डलीक अवस्था में, तीन सौ वर्ष दिग्विजय में, अठारह हजार सात सौ चक्रवर्ती होकर राज्य अवस्था में और दस हजार वर्ष संयमी अवस्था में व्यतीत हुए थे । पद्मपुराण 20. 178-184, हरिवंशपुराण 20.12-23, 60. 286-287, 510-511, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110
(2) तीर्थंकर शीतलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण 20. 20-24
(3) जरासन्ध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.38
(4) कुण्डलगिरि के सुप्रभकूट का निवासी देव । हरिवंशपुराण 5.692
(5) महाहिमवत् कुलाचल का ह्रद-सरोवर । रोहित और हरिकान्ता ये दो नदियाँ इसी ह्रद से निकली है । ह्री देवी यही रहती है । महापुराण 63.103, 197, 200, हरिवंशपुराण 5.121, 130, 133
(6) आगामी नौवाँ चक्रवर्ती । महापुराण 76.483, हरिवंशपुराण 60. 564-565
(7) आगामी प्रथम तीर्थङ्कर― राजा श्रेणिक का जीव । महापुराण 74.452, 76.477, हरिवंशपुराण 60.558, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.154-157
(8) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के वीतशोक नगर का राजा । इसकी रानी का नाम वनमाला तथा पुत्र का नाम शिवकुमार था । महापुराण 76.130-131
(9) आगामी सोलहवाँ कुलकर । महापुराण 76.466
(10) तीर्थङ्कर सुविधिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-पुष्करार्ध द्वीप के पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यह जिनराज भूतहित से धर्मोपदेश सुनकर संसार से विरक्त हो गया । पुत्र घनद को राज्य सौंपने के पश्चात् यह दीक्षित हुआ । तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध कर अन्त में यह समाधिपूर्वक मरा और प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुआ । वहाँ से चयकर काकन्दी नगरी के राजा सुमति और उसकी पट्टरानी जयरामा के पुष्पदन्त नामक पुत्र हुआ । महापुराण 55.2-28