वनक्रीडा
From जैनकोष
क्रीडा-विनोद का एक भेद । यह शिशिर के पश्चात् की जाती है । दम्पति यहाँ आकर वृक्षों की टहनियाँ हिलाकर और पत्र-पुष्प तोड़कर क्रीडा करते हैं । ऐसी क्रीडा करने वाले यदि पति-पत्नी नहीं होते तो वे समवयस्क अवश्य होते हैं । महापुराण 14.207-208