विहारक्रिया
From जैनकोष
गर्भान्वयी त्रेपन क्रियाओं में इक्यावनवीं क्रिया । धर्मचक्र को आगे करके तीर्थङ्करों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया कहलाती है । तीर्थङ्कर विहार करते समय आकाशमार्ग से चलते हैं । उनके चरणों के आगे और पीछे सात-सात तथा चरणों के नीचे एक इस प्रकार पन्द्रह कमलों की रचना की जाती है । मन्द-सुगन्धित वायु बहती है और भूमि निष्कन्टक हो जाती है । महापुराण 38.62-63, 304, हरिवंशपुराण 3.20-24