श्रेयान्
From जैनकोष
(1) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 209
(2) पुरुषोत्तम नारायण के पूर्वभव के दीक्षागुरु । पद्मपुराण 20. 216
(3) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एवं ग्यारहवें तीर्थङ्कर । इनका अपर नाम श्रेयस था । पद्मपुराण 5.214, हरिवंशपुराण 1. 13, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101-106 देखें श्रेयांसनाथ
(4) कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर के कुरुवंशी राजा सोमप्रभ के भाई । वृषभदेव को देखकर इन्हें पूर्वभव में अपने द्वारा दिये गये आहार दान का स्मरण हो आया था । इससे ये विधिपूर्वक वृषभदेव के लिए इक्षु रस का आहार दे सके थे । आहारदान देने की प्रवृत्ति का शुभारम्भ इन्हीं ने किया था । अन्त में ये दीक्षा लेकर वृषभदेव के गणधर हुए । दसवें पूर्वभव में ये वनश्री, नौवें में निर्नामिका, आठवें में स्वयंप्रभा देवी, सातवें में श्रीमती, छठे में भोगभूमि की आर्या, पाँचवें में स्वयंप्रभ दैव, चौथे में केशव, तीसरे में अच्युत स्वर्ग के इन्द्र, दूसरे में धनदत्त, प्रथम पूर्वभव में अहमिन्द्र हुए थे । महापुराण 6. 60, 8. 33, 185-188, 9.186, 10. 171-172, 186, 11. 14, 20. 30-31, 78-81, 88, 128, 24.174, 43. 52, 47. 360-362, हरिवंशपुराण 9.158, 45. 6-7