सूर्यप्रज्ञप्ति
From जैनकोष
अंगश्रुत का एक भेद । दृष्टिवाद अंग के प्रथम भेद परिकर्म में पाँच प्रज्ञप्तियों का वर्णन है जिनमें यह दूसरी प्रज्ञप्ति है । इसमें पाँच लाख तीन हजार पदों के द्वारा सूर्य के वैभव का वर्णन किया गया है । हरिवंशपुराण 10. 62, 64