सेना
From जैनकोष
(1) तीर्थंकर संभवनाथ की जननी । पद्मपुराण 20.39
(2) हाथी, घोड़ा, रथ और पयादे ये सेना के चार अंग होते हैं । इनकी गणना करने के आठ भेद हैं― पत्ति, सेना, सेनामुख, गुल्म, वाहिनी, पृतना, चमू और अनीकिनी । इनमें एक रथ, एक हाथी, तीन घोड़ों और पांच पयादों के समूह को पत्ति कहते हैं । सेना तीन पत्ति की होती है । तीन सेनाओं का दल सेनामुख, तीन सेनामुखों का दल गुल्म, तीन मूल्यों के दल को एक वाहिनी, तीन वाहिनियों की एक पृतना, तीन पृतनाओं की एक चमू और तीन चमू की एक अनीकिनी होती है । इन्द्र की सेना की सात कक्षाएँ होती है । उनके नाम इस प्रकार बताये गये हैं― हाथी, घोड़े, रथ, पयादे, बैल, गन्धर्व और नृत्यकारिणी । इनमें प्रथम गाज-सेना में बीस हजार हाथी होते हैं । आगे की कक्षाओं में यह संख्या दूनी-दूनी होती जाती है । महापुराण 10.198-199, पद्मपुराण 56.3-8