सौधर्म
From जैनकोष
सौलह कल्पों स्वर्ग में प्रथम कल्प । सौधर्म और ऐशान कल्पों में इकतीस पटल है उनके नाम हैं—1. ऋतु 2. विमल 3. चन्द्र 4. वल्गु 5. वीर 6. अरुण 7. नन्दन 8. नलिन 9. कांचन 10. रोहित 11. चंचत् 12. मारुत 13. ऋद्धीश 14. वैडूर्य 15. रुचक 16. रुचिर 17. अर्क 18. स्फटिक 19. तपनीयक 20. मेघ 21. भद्र 22. हारिद्र 23. पद्म 24. लोहिताक्ष 25. वज्र 26. नन्द्यावर्त 27. प्रभंकर 28. प्रष्टक 29. जगत् 30. मित्र और 31. प्रभा । इस स्वर्ग में बत्तीस लाख विमान हैं । विमानों में 640000 विमान संख्यात योजन विस्तार वाले हैं । यहाँ के भवनों के मूल शिलापीठ की मोटाई 1121 योजन और चौर चौड़ाई 120 योजन है । यहाँ के भवन काले, नीले, लाल, पीले और सफेद रंग के होते हैं । ये घनोदधि का आधार लिये रहते हैं । यहाँ देवों के मध्यम पीत लेश्या होती है । देवों का अवधिज्ञान का विषय धर्मा पृथिवी तक है । यहाँ देवियों के उत्पत्ति-स्थान छ: लाख है । यहाँ के प्रथन ऋतु विमान और मेरु की चूलिका में बाल मात्र का अन्तर है । ऋतु विमान 45 लाख योजन विस्तृत है । इस कल्प में संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों से चौगुने असंख्यात योजन विस्तार वाले विमान है । हरिवंशपुराण 3.36, 6. 44-47, 55, 78-121 देखें कल्प