बोधपाहुड गाथा 35
From जैनकोष
आगे प्राणद्वारा कहते हैं -
पंच वि इंदियपाणा मणवयकाएण तिण्णि बलपाणा ।
आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दह पाणा ।।३५।।
पंचापि इंद्रियप्राणा: मनोवचनकायै: त्रयो बलप्राणा: ।
आनप्राणप्राणा: आयुष्कप्राणेन भवंति दशप्राणा: ।।३५।।
पंचेन्द्रियों मन-वचन-तन बल और श्वासोच्छ्वास भ ी ।
अर आयु - इन दश प्राणों में अरिहंत की स्थापना ।।३५।।
अर्थ - पाँच इन्द्रियप्राण, मन-वचन-काय तीन बलप्राण, एक श्वासोच्छ्वास प्राण और एक आयुप्राण ये दस प्राण हैं ।
भावार्थ - इसप्रकार दस प्राण कहे उनमें तेरहवें गुणस्थान में भावइन्द्रिय और भावमन का क्षयोपशमभावरूप प्रवृत्ति नहीं है इस अपेक्षा तो कायबल, वचनबल, श्वासोच्छ्वास और आयु - ये चार प्राण हैं और द्रव्य अपेक्षा दसों ही हैं । इसप्रकार प्राण द्वारा अरहंत का स्थापन है ।।३५।।