अविभाग प्रतिच्छेद
From जैनकोष
शक्ति अंशको अविभावप्रतिच्छेद कहते हैं। वह जड़ व चेतन सभी पदार्थों के गुणों में देखे जाते हैं। यथा-
1. द्रव्य या गुणों सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद
धवला पुस्तक 12/4,2,7,199/92/10 सव्वमंदाणुभागपरमाणुं घेत्तूण वण्णगंधरसे मोत्तूण पासं चेव बुद्धीए घेतूण तस्स पण्णाच्छेदो कायव्वो जाव विभागवज्जिदपरिच्छेदो त्ति। तस्स अंतिमस्स खंडस्स अछेज्जस्स अविभागपडिच्छेद इदि सण्णा।
= सर्वमन्द अनुभागसे युक्त परणाणु को ग्रहण करके, वर्ण गन्ध रसको छोड़कर, केवल स्पर्शका (एक गुणका) ही बुद्धिसे ग्रहण कर उसका विभाग रहित छेद होने तक प्रज्ञाके द्वारा छेद करना चाहिए। उस नहीं छेदने योग्य अन्तिम खण्डकी अविभाग प्रतिच्छेद संज्ञा है।
(राजवार्तिक अध्याय 2/5/4/107/6) (गो.जी./भाषा.59/154/18)
धवला पुस्तक 14/5/6/504/401/4 एगपरमाणुम्हि आ जहण्णिया बड्ढी सो अविभागपडिच्छेदो णाम।
= एक परमाणुमें जो जघन्य वृद्धि होती है। उसे अविभागप्रतिच्छेद कहते हैं।
2. अनुभाग सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद
धवला पुस्तक 12/4,2,7,199/92/3 तत्थ एक्कम्हि परमाणु म्हि जो जहण्णेण वट्ठिदो अणुभागो तस्स अविभागपरिच्छेदो त्ति सण्णा।
= एक परमाणुमें जो जघन्यरूपसे अवस्थित अनुभाग है उसकी अविभाग प्रतिच्छेद संज्ञा है।
3. योग सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद
धवला पुस्तक 10/4,2,4,178/440/5 जोगाविभागपडिच्छेदो णाम किं। एक्केम्हि जीवपदेसेजोगस्स जाजहण्णिया वड्ढी सो जागाविभागपडिच्छेदो।...एकजीवपदेसट्ठियजहण्णजोगे असंखेज्जलोगेहि खंडिदे तत्थ एगखण्डमविभागपडिच्छेदो णाम।
= प्रश्न - योगाविभागप्रतिच्छेद किसे कहते हैं? उत्तर - एक जीवप्रदेशसे योगकी जो जघन्य वृद्धि है, उसे योगाविभागप्रतिच्छेद कहते हैं। ...एक जीवप्रदेशमें स्थिर जघन्य योगको असंख्यत लोकोंसे खण्डित करनेपर उनमेंसे एक खण्ड अविभागप्रतिच्छेद कहलाता है।
• गुणोंमें अविभागप्रतिच्छेदों रूप अशंकल्पना - देखें गुण - 2।