मोक्षपाहुड गाथा 64
From जैनकोष
आगे आत्मा का ध्यान करना वह आत्मा कैसा है, यह कहते हैं -
अप्पा चरित्तवंतो दंसणणाणेण संजुदो अप्पा ।
सो झायव्वो णिच्चं णाऊणं गुरुपसाएण ।।६४।।
आत्मा चारित्रवान् दर्शनज्ञानेन संयुत: आत्मा ।
स: ध्यातव्य: नित्यं ज्ञात्वा गुरुप्रसादेन ।।६४।।
ज्ञान दर्शन चरित मय जो आतमा जिनवर कहा ।
गुरु की कृपा से जानकर नित ध्यान उसका ही करो ।।६४।।
र्थ - आत्मा चारित्रवान् है और दर्शन-ज्ञान सहित है ऐसा आत्मा गुरु के प्रसाद से जानकर नित्य ध्यान करना ।
भावार्थ - आत्मा का रूप दर्शन-ज्ञान-चारित्रमयी है, इसका रूप जैनगुरुओं के प्रसाद से जाना जाता है । अन्यमतवाले अपना बुद्धिकल्पित जैसा तैसा मानकर ध्यान करते हैं, उनके यथार्थ सिद्धि नहीं है, इसलिए जैनमत के अनुसार ध्यान करना ऐसा उपदेश है ।।६४।।