मोक्षपाहुड गाथा 73
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि कई मूर्ख ऐसे कहते हैं जो अभी पंचमकाल है सो आत्मध्यान का काल नहीं है, उसका निषेध करते हैं -
चरियावरिया वदसमिदिवज्जिया सुद्धभावपब्भट्ठा ।
केई जंपति णरा ण हु कालो झाणजोयस्स ।।७३।।
चर्यावृत्ता: व्रतसमितिवर्जिता: शुद्धभावप्रभ्रष्टा: ।
केचित् जल्पंति नरा: न स्फुटं काल: ध्यानयोगस्य ।।७३।।
जिनके नहीं व्रत-समिति चर्या भ्रष्ट हैं शुधभाव से ।
वे कहें कि इस काल में निज ध्यान योग नहीं बने ।।७३।।
अर्थ - कई मनुष्य ऐसे हैं जिनके चर्या अर्थात् आचारक्रिया आवृत्त है, चारित्रमोह का उदय प्रबल है, इससे चर्या प्रकट नहीं होती है इसी से व्रतसमिति से रहित हैं और मिथ्या अभिप्राय के कारण शुद्धभाव से अत्यंत भ्रष्ट हैं, वे ऐसे कहते हैं कि अभी पंचमकाल है, यह काल प्रकट ध्यान योग का नहीं है ।।७३।।