मोक्षपाहुड गाथा 89
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो निरन्तर सम्यक्त्व का पालन करते हैं, वे धन्य हैं -
ते धण्णा सुकयत्था ते सुरा ते वि पंडिया मणुया ।
सम्मत्तं सिद्धियरं सिविणे वि ण मइलियं जेहिं ।।८९।।
ते धन्या: सुकृतार्था: ते शूरा: तेsपि पंडिता मनुजा: ।
सम्यक्त्वं सिद्धिकरं स्वप्नेsपि न मलिनितं यै: ।।८९।।
वे धन्य हैं सुकृतार्थ हैं वे शूर नर पण्डित वही ।
दु:स्वप्न में सम्यक्त्व को जिनने मलीन किया नहीं ।।८९।।
अर्थ - जिन पुरुषों ने मुक्ति को करनेवाले सम्यक्त्व को स्वप्नावस्था में भी मलिन नहीं किया, अतीचार नहीं लगाया वे पुरुष धन्य हैं, वे ही मनुष्य हैं, वे ही भले कृतार्थ हैं, वे ही शूरवीर हैं, वे ही पंडित हैं ।
भावार्थ - लोक में कुछ दानादिक करे उनको धन्य कहते हैं तथा विवाहादिक यज्ञादिक करते हैं उनको कृतार्थ कहते हैं, युद्ध में पीछा न लौटे उसको शूरवीर कहते हैं, बहुत शास्त्र पढ़े उसको पंडित कहते हैं । ये सब कहने के हैं जो मोक्ष के कारण सम्यक्त्व को मलिन नहीं करते हैं, निरतिचार पालते हैं उनको धन्य है, वे ही कृतार्थ हैं, वे ही शूरवीर हैं, वे ही पंडित हैं, वे ही मनुष्य हैं, इसके बिना मनुष्य पशुसमान है, इसप्रकार सम्यक्त्व का माहात्म्य जानो ।।८९।।