त्रिकृत्वा
From जैनकोष
ध.१३/५,४,२८/८९/१ पदांहिणणमंसणादिकिरियाणं तिण्णिवारकरणं तिक्खुत्तं णाम। अधवा एक्कम्मि चेव दिवसे जिणगुरुरिसिवंदणाओ तिण्णिवारं किज्जंति त्ति तिक्खुत्तं णाम। =प्रदक्षिणा और नमस्कारादि क्रियाओं का तीन बार करना त्रि:कृत्वा है। अथवा एक ही दिन में जिन, गुरु और ऋषियों की वन्दना तीन बार की जाती है, इसलिए इसका नाम त्रि:कृत्वा है।