योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 125
From जैनकोष
प्रत्येक द्रव्य का परिणमन स्वतंत्र -
नान्यद्रव्य- परीणाममन्य- द्रव्यं प्रपद्यते ।
स्वान्य-द्रव्य-व्यवस्थेयं परस्य घटते कथम् ।।१२५।।
अन्वय :- अन्य-द्रव्य-परीणामं अन्य-द्रव्यं न प्रपद्यते, (अन्यथा) इयं स्व-अन्य-द्रव्य- व्यवस्था परस्य (था) कथं घटते ? (अर्थात् नैव घटते) ।
सरलार्थ :- अन्य द्रव्य का परिणाम अन्य द्रव्य को प्राप्त नहीं होता अर्थात् एक द्रव्य का परिणमन दूसरे द्रव्य के परिणमनरूप कभी नहीं होता, यदि ऐसा न माना जाय तो यह स्वद्रव्य- परद्रव्य की व्यवस्था कैसे बन सकती है ?अर्थात् नहीं बन सकती ।