कृतान्तवक्त्र
From जैनकोष
मथुरा के राजा मधु को जीतने को तत्पर शत्रुघ्न की सेना का पद्म (राम) द्वारा नियुक्त सेनापति और राजा मधु के पुत्र लवणार्णव का हन्ता । पद्मपुराण 89.36,80 इसने अवर्णवाद के कारण गर्भवती होते हुए भी सीता को सिंहनाद नाम की निर्जन अटवी मे पद्म की आशा से रोते हुए छोड़ा था । पद्मपुराण 97.61-63, 150 अयोध्या में आये सकल-भूषण मुनि से भवभ्रमण के दु:खों को सुनकर इसे वैराग्य हो गया और इसने पद्म के समक्ष उनसे दीक्षा लेने का प्रस्ताव रखा । पद्म ने इसे रोकना चाहा, पर वह अपने निश्चय पर दृढ़ रहा । इसकी दृढ़ता देखकर पद्म ने इससे प्रतिज्ञा करायी कि यदि निर्वाण न हो और देव योनि ही मिले तो संकट के समय वह उनको सम्बोधने अवश्य आये । इसे इसने स्वीकार किया और सकल-भूषण मुनि से निर्ग्रन्थ-दीक्षा धारण की । पद्मपुराण 107.1-18 मरकर यह देव हुआ । स्वर्ग से आकर इसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार लक्ष्मण की मृत्यु होने पर पद्म को सम्बोधित कर उनका मोह दूर किया । पद्मपुराण 118.40-63 73-105 इसका अपरनाम वृतान्तवक्र था । पद्मपुराण 1.98