योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 64
From जैनकोष
आचार्य कुंदकुंद ने पंचास्तिकाय संग्रह की गाथा १० में भी द्रव्य का लक्षण निम्नानुसार दिया है -
दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ।।
गाथार्थ - जो सत् लक्षणवाला है, जो उत्पादव्ययध्रौव्य संयुक्त है अथवा जो गुणपर्यायों का आश्रय है, उसे सर्वज्ञदेव द्रव्य कहते हैं । प्रश्न - `गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं' यह जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में समागत लक्षण ठीक नहीं लगता है? उत्तर - नहीं, यह लक्षण भी आगम व युक्ति सम्मत ही है । पंचाध्यायी के प्रथम अध्याय के ७३वें श्लोक में गुणसमुदायो द्रव्यं ऐसा कहा है । युक्ति से भी यह लक्षण सही सिद्ध होता है; क्योंकि पर्यायें गुणों की ही तो होती हैं । गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं, ऐसा कहो अथवा गुणपर्यायों के समूह को द्रव्य कहते हैं, ऐसा कहो - दोनों का अर्थ/अभिप्राय एक ही है ।