योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 75
From जैनकोष
धर्मादि द्रव्यों का उपकार -
जीवानां पुद्गलानां च धर्माधर्मौ गतिस्थिती ।
अवकाशं नभ: कालो वर्तनां कुरुते सदा ।।७४।।
अन्वय :- धर्म-अधर्मौ जीवानां पुद्गलानां गति-स्थिती, नभ: अवकाशं, काल: वर्तनां सदा कुरुते ।
सरलार्थ :- धर्मद्रव्य, जीव और पुद्गलों को गमन करने में सदा उपकार करता है । अधर्मद्रव्य, जीव और पुद्गलों को स्थिर रहने में सदा उपकार करता है । आकाशद्रव्य जीवादि सर्व द्रव्यों को जगह/स्थान देने में सदा उपकार करता है । कालद्रव्य जीवादि सर्व द्रव्यों को परिवर्तन करने/बदलने में सदा उपकार करता है ।