योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 84
From जैनकोष
प्रकृतिबन्ध के भेद -
ज्ञानदृष्ट्यावृती वेद्यं मोहनीयायुषी विदु: ।
नाम गोत्रान्तरायौ च कर्माण्यष्टेति सूरय: ।।८३।।
अन्वय :- ज्ञान-दृष्ट्यावृती वेद्यं मोहनीय-आयुषी नाम च गोत्र-अन्तरायौ इति अष्टकर्माणि सूरय: विदु: ।
सरलार्थ :- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय इसप्रकार आचार्यो ने प्रकृतिबंध के आठ भेद बताये हैं ।