योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 91
From जैनकोष
कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना -
सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:
कर्माण्याश्रित्य जीवोsपि सरागत्वं प्रपद्यते ।।९०।।
अन्वय :- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीव: अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते ।
सरलार्थ :- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है ।