अनिष्ट संयोगज
From जैनकोष
द्वितीय आर्त्तध्यान । इसमें अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर उत्पन्न भाव अथवा अनिष्ट वस्तु की अप्राप्ति के लिए चिन्तन होता है । महापुराण 21.32, 35-36 देखें आर्त्तध्यान
द्वितीय आर्त्तध्यान । इसमें अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर उत्पन्न भाव अथवा अनिष्ट वस्तु की अप्राप्ति के लिए चिन्तन होता है । महापुराण 21.32, 35-36 देखें आर्त्तध्यान