योगसार - जीव-अधिकार गाथा 40
From जैनकोष
निश्चयचारित्र का स्वरूप -
अभिन्नमात्मन: शुद्धं ज्ञानदृष्टियं स्फुट् ।
चारित्रं चर्यते शश्वच्चारु-चारित्रवेदिभि: ।।४० ।।
अन्वय :- चारु-चारित्रवेदिभि: आत्मन: अभिन्नं शुद्धं ज्ञानदृष्टियं स्फुटं चारित्रं शश्वत् चर्यते ।
सरलार्थ :- सम्यग्चारित्र के अनुभवी महापुरुष आत्मा से अभिन्न, शुद्ध अर्थात् वीतरागमय, सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान सहित स्पष्ट अर्थात् व्यक्त, चारित्र का निरंतर आचरण करते हैं ।