योगसार - जीव-अधिकार गाथा 45
From जैनकोष
आत्मस्वरूप की अनुभूति का उपाय -
निषिध्य स्वार्थतोsक्षाणि विकल्पातीतचेतस: ।
तद्रूपं स्पष्टाभाति कृताभ्यासस्य तत्त्वत: ।।४५।।
अन्वय :- अक्षाणि स्व-अर्थत: निषिध्य कृताभ्यासस्य विकल्पातीत-चेतस: तत् रूपं (आत्मरूपं) तत्त्वत: स्पष्टं आभाति ।
सरलार्थ :- स्पर्शनेन्द्रियादि इन्द्रियों को अपने-अपने स्पर्शादि विषयों से रोककर आत्मध्यान का अभ्यास करनेवाले निर्विकल्पचित्त/ध्याता/साधक को आत्मा का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट/ विशद/साक्षात् अनुभव में आता है ।