योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 151
From जैनकोष
कर्मबन्ध के चार भेद -
प्रकृतिश्च स्थितिर्ज्ञेय: प्रदेशोsनुभव: पर: ।
चतुर्धा कर्मणो बन्धो दु:खोदय-निबन्धनम् ।।१५१।।
अन्वय :- कर्मण: बन्ध: प्रकृति: स्थिति: प्रदेश: अनुभव-पर: च चतुर्धा ज्ञेय: (यत्) दु:खोदय-निबन्धनं (भवति) ।
सरलार्थ :- कर्म का बन्ध प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग के भेद से चार प्रकार का जानना चाहिए, जो कि आत्मा को दु:ख का कारण है ।