योगसार - संवर-अधिकार गाथा 213
From जैनकोष
पर्याय-अपेक्षा से कर्मफल भोगने का स्वरूप -
विदधाति परो जीव: किंचित्कर्म शुभाशुभम् ।
पर्यायापेक्षया भुङ्क्ते फलं तस्य पुन: पर: ।।२१३।।
अन्वय :- पर्याय-अपेक्षया पर: (एक:) जीव: किंचित् शुभ-अशुभं कर्म विदधाति पुन: पर: (अन्य: जीव:) तस्य फलं भुङ्क्ते ।
सरलार्थ :- पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से अन्य जीव कुछ शुभ-अशुभ कर्म करता है और उसका फल अन्य जीव भोगता है ।