इन्द्र
From जैनकोष
(1) भरतक्षेत्र मे विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के रथनूपुर नगर के राजा विद्युत्प्रभ का बड़ा पुत्र । यह विद्युन्माली का अग्रज था । राजा होने के पश्चात् इसके शत्रुओं का दमन अर्जुन ने किया था । पद्मपुराण 1.59-60, पांडवपुराण 17.41-45, 60-62
(2) चन्द्रशेखर का पुत्र, चन्द्ररथ का पिता । पद्मपुराण 5.47-56
(3) देवों के स्वामी । ये महायुध वज्र के धारक होते हैं । पद्मपुराण 2. 243-244, हरिवंशपुराण 3.151, कल्पवासी, भवनवासी और व्यन्तर देवों के जितने इन्द्र होते हैं उतने ही प्रतीन्द्र भी होते हैं । कल्पवासी देवों के बारह इन्द्रों के नाम है― 1. सौधर्मेन्द्र 2. ऐशानेन्द्र 3. सनत्कुमारेन्द्र 4. माहेन्द्र 5. ब्रह्मेन्द्र 6. लान्तवेन्द्र 7. शुकेन्द्र 8. शतारेन्द्र 9. आनतेन्द्र 10. प्राणतेन्द्र 11. अरणेन्द्र 12. अच्युतेन्द्र । भवनवासी देवों के बीस इन्द्रों के नाम है― 1. चमर 2. वैरोचन 3. भूतेश 4. धरणानन्द 5. वेणुदेव 6. वेजुधरा 7. पूर्ण 8. अवशिष्ट 9. जलप्रभ 10. जलकान्ति 11. हरिषेण 12. हरिकान्त 13. अग्निशिखी 14. अग्निवाहन 15. अमितगति 16. अमितवाहन 17. घोष 18. महाघोष 19. वेलंजन और 20. प्रभंजन । व्यन्तर देवों के सोलह इन्द्र है― 1. अतिकाय 2. काल 3. किन्नर 4. किम्पुरुष 5. गीतरति 6. पूर्णभद्र 7. प्रतिरूपक 8. भीम 9. मणिभद्र 10. महाकाय 11. महाकाल 12. महामीम 13. महापुरुष 14. रतिकीर्ति 15. सत्पुरुरुष 16. सुरूप । ज्योतिष देवों के पांच इन्द्र है― चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारक । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.41-43
(4) जमदग्नि का पुत्र । महापुराण 65.92
(5) द्युतिलकपुर के राजा चन्द्राभ का मंत्री । महापुराण 74.141
(6) रथनूपुर के राजा सहस्रार और उसकी रानी मानसुन्दरी का पुत्र । गर्भावस्था में माता को इन्द्र के भोग भोगने की इच्छा होने के कारण पिता ने पुत्र का यह नाम रखा था । इसने इन्द्र के समान सुन्दर महल बनवाया था, अड़तालीस हजार इसकी रानियाँ थी, ऐरावत हाथी था, चारों दिशाओं में इसने लोकपाल नियुक्त किये थे, इसकी पटरानी का नाम शची था और सभा का नाम सुधर्मा था । इसके पास वज्र नाम का शस्त्र, तीन सभाएँ, हरिणकेशी सेनापति, अश्विनीकुमार वैद्य, आठ वसु, चार प्रकार के देव, नारद, तुम्बरु, विश्वबासु आदि गायक, उर्वशी, मेनका, मंजुस्वनी अप्सराएँ और वृहस्पति मंत्री थे इसने अपने वैभव को इन्द्र के समान ही नाम दिये थे । रावण के दादा माली को मारकर इसने इन्द्र के सदृश राज्य किया था । महापुराण 7.1-31, 85-88 अन्त में दशानन ने इसे युद्ध में हराया था । रावण के द्वारा बद्ध इसे पिता सहस्रार ने बंधनों से मुक्त कराया था । असार सुख के स्वाद से सचेत करने के कारण इसने रावण को अपना महाबन्धु माना था । अंत में निर्वाणसंगम मुनि से धर्मोपदेश सुन कर यह विरक्त हुआ और पुत्र को राज्य देकर अन्य पुत्रों और लोकपालों सहित इसने दीक्षा धारण कर की तथा तपपूर्वक शुक्लध्यान से कर्मक्षय करके निर्वाण प्राप्त किया । पद्मपुराण 12.346-347, 13.32-109