उपनीतिक्रिया
From जैनकोष
(1) गृहस्थ की तिरेपन गर्भान्वय क्रियाओं में चौदहवीं क्रिया । शिशु की यह क्रिया गर्भ से आठवें वर्ष में की जाती है । इसके अन्तर्गत शिशु के केशों का मुण्डन, व्रतबंधन, तथा मौजीबन्धन किया जाता है । ये क्रियाएं अर्हत्-पूजा के पश्चात् जिनालय में बालक को व्रत देकर गुरु की साक्षी में की जाती है । भिक्षा में प्राप्त अन्न का अग्रभाग देव को समर्पित कर बालक शेष अन्न को भोजन में ग्रहण करता है । इसके क्रिया-चयन मे मंत्र पढ़े जाते है― परमनिस्तारकलिंग भागी भव, परमर्षिलिंगभागी भव, परमेन्द्रलिंगभागी भव, परमराज्यलिंगभागी भव । महापुराण 38.55-63, 104-108, 40.153-155
(2) दीक्षान्वय से संबंधित नीची क्रिया । इसमें देवता और गुरु की साक्षी में विधि के अनुसार अपने वेष, सदाचार और समय की रक्षा की जाती है । महापुराण 39.54