कर्मभूमि
From जैनकोष
वृषभदेव ने कृषि आदि छ: कर्मों की व्यवस्था इस भरतक्षेत्र की भूमि में की थी । यह भूमि इसी नाम से विख्यात है । महापुराण 16.2249, हरिवंशपुराण 3.112 यहाँ उत्पन्न मनुष्य अपनी-अपनी वृत्ति की विशेषता से तीन प्रकार के होते हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । इनमें शलाकापुरुष, कामदेव, विद्याधर और देवार्चित सन्त ये उत्तम मनुष्य तथा छठे काल के मनुष्य जघन्य और इन दोनों के बीच के मनुष्य मध्यम हैं । महापुराण 76.500-502 अढ़ाई द्वीप संबंधी कर्मभूमियाँ पन्द्रह होती है । देवकुरु और उत्तरकुरु सहित विदेह, भरत तथा ऐरावत क्षेत्रों में इन कर्मभूमियों की संख्या 15 है― 5 विदेह क्षेत्र में, 5 भरत क्षेत्र में और 5 ऐरावत क्षेत्र में । पद्मपुराण 89.106,105.162