योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 283
From जैनकोष
परद्रव्य को जानने का लाभ -
विज्ञातव्यं परद्रव्यमात्मद्रव्य-जिघृक्षया ।
अविज्ञातपरद्रव्यो नात्मद्रव्यं जिघृक्षति ।।२८३।।
अन्वय :- आत्मद्रव्य-जिघृक्षया (गृहीतुमिच्छया) परद्रव्यं विज्ञातव्यं । अविज्ञात परद्रव्य: आत्मद्रव्यं न जिघृक्षति ।
सरलार्थ :- आत्मद्रव्य को ग्रहण करने की इच्छा से परद्रव्य को जानना चाहिए । जो परद्रव्य के ज्ञान से रहित है वह आत्मद्रव्य के ग्रहण की इच्छा नहीं करता ।