योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 291
From जैनकोष
जो वेद्य को जानता है वह वेदक को जानता ही है -
विदन्ति दुर्धियो वेद्यं वेदकं न विदन्ति किम् ।
द्योत्यं पश्यन्ति न द्योतमाश्चर्यं बत कीदृशम् ।।२९१।।
अन्वय :- दुर्धिय: वेद्यं विदन्ति वेदकं किं न विदन्ति ? द्योत्यं पश्यन्ति द्योतं न बत कीदृशम् आश्चर्य् (अस्ति)?
सरलार्थ :- दुर्बुद्धि वेद्य को तो जानते हैं वेदक को क्यों नहीं जानते? प्रकाश्य को तो देखते हैं किन्तु प्रकाशक को नहीं देखते, यह कैसा आश्चर्य है?