योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 340
From जैनकोष
वाद-विवाद अज्ञान अंधकारमय -
मुक्त्वा वाद-प्रवादाद्यमध्यात्मं चिन्त्यतां त त : ।
नाविधूते तम:स्तोे ज्ञेये ज्ञानं प्रवर्तते ।।३४०।।
अन्वय :- तत: वाद-प्रवादाद्यं मुक्त्वा अध्यात्मं चिन्त्यतां तम: स्तोे अविधूते ज्ञानं ज्ञेये न प्रवर्तते ।
सरलार्थ :- इसलिए वाद-विवाद, चर्चा-वार्ता, समझना-समझाना, सुनना-सुनाना, उपदेश आदि परिणामों को छोड़कर अर्थात् उपेक्षा करके आत्मा के परम स्वरूप का चिंतन करना चाहिए । धर्म-ज्ञानसंबंधी वाद-विवाद आदि पुण्यरूप परिणाम अंधकार-समूहरूप है, उसके नाश के बिना अपना प्रगट ज्ञान शुद्धात्मस्वरूप ज्ञेय में प्रवृत्त नहीं होता ।