योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 353
From जैनकोष
तत्त्व-श्रवण की प्रेरणा -
क्षाराम्भ:सदृशी त्याज्या सर्वदा भोग-शेुषी ।
मधुराम्भोनिभा ग्राह्या यत्नात्तत्त्वश्रुतिर्बुधै: ।।३५३।।
सरलार्थ :- खारे जल के समान दु:खरूप एवं दु:खदायक भोगबुद्धि - अर्थात् पाँचों इंद्रियों के स्पर्शादि भोग्य विषयों में सुख है, ऐसी मिथ्या/विपरीत श्रद्धा का त्याग करना चाहिए और सदा ग्राह्य मधुर जल के समान सर्वज्ञ कथित जीवादि सप्त तत्त्वों का श्रवण ध्यान की सिद्धि के लिये बुधजनों को करना चाहिए ।