योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 474
From जैनकोष
सिद्ध जीव पुन: संसारी नहीं हो सकता -
सर्वजन्मविकाराणामभावे तस्य तत्त्वत: ।
न मुक्तो जायतेsमुक्तोsमुख्योsज्ञानमयस्तथा ।।४७४।।
अन्वय :- तस्य (आत्मन:) तत्त्वत: सर्वजन्मविकाराणां अभावे (सति; य: जीव:) मुक्त: (भवति; स:) अमुक्त: अमुख्य: तथा अज्ञानमय: न जायते ।
सरलार्थ :- आत्मा के सर्व संसार-विकारों का वस्तुत: अभाव हो जाने पर जो जीव मुक्त अर्थात् सिद्ध आत्मा हो जाता है, वह परमात्मा फिर कभी अमुक्त अर्थात् संसार पर्याय का धारक संसारीजीव नहीं होता, न साधारण प्राणी बनता है और न अज्ञानरूप ही परिणत होता है ।