योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 516
From जैनकोष
भेदज्ञान का माहात्म्य -
देहचेतनयोर्भेदो दृश्यते येन तत्त्वत: ।
न सङ्गो जायते तस्य विषयेषु कदाचन ।।५१७।।
अन्वय : - येन (जीवेन) तत्त्वत: देहचेतनयो: भेद: दृश्यते, तस्य विषयेषु कदाचन सङ्ग: न जायते ।
सरलार्थ :- जिस जीव ने अनित्य एवं अचेतन देह और सुखस्वभावी एवं चेतन आत्मा में भेद तत्त्वत: अर्थात् वास्तविक रीति से देख/जान लिया है - अनुभव में लिया है, उस जीव का पंचेंद्रियों के स्पर्शादि विषयों में संग अर्थात् आसक्तभाव कभी भी नहीं होता - विरक्तभाव ही रहता है ।