योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 532
From जैनकोष
वस्तुत: ज्ञान के भेद नहीं -
गवां यथा विभेदेsपि क्षीरभेदो न विद्यते ।
पुंसां तथा विभेदेsपि ज्ञानभेदो न विद्यते ।।५३३।।
अन्वय : - यथा गवां विभेदे अपि क्षीरभेद: न विद्यते, तथा पुंसां विभेदे अपि ज्ञानभेद: न विद्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार विभिन्न गायों में काली, पीली, धौली, चितकबरी रूप भेद होने पर भी उनके दूध में अर्थात् दूध के सामान्य श्वेत वर्णादि में कोई भेद नहीं होता; उसीप्रकार आत्मा के एकेंद्रियादिक-तिर्यंचादिक भेद होनेपर भी उनके ज्ञान के जाननरूप स्वभाव में भेद नहीं होता ।