जीवाधिकरण
From जैनकोष
आस्रव का प्रथम भेद । यह संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ से होता है । इन तीनों में प्रत्येक कृत, कारित, अनुमोदना के भेद से तीन-तीन तथा क्रोध, मान, माया, लोभ के भेद से चार-चार, इस प्रकार छत्तीस भेद होते हैं मनोयोग, वचनयोग, काययोग के भेद से इनके तीन-तीन भेद और करने से इसके कुल एक सौ आठ भेद होते हैं । हरिवंशपुराण 58.84-85