तत्त्वार्थ सूत्र
From जैनकोष
आ0उमास्वामी (ई.श.3) कृत मोक्षमार्ग, तत्त्वार्थ दर्शन विषयक 10 अध्यायों में सूत्रबद्ध ग्रन्थ है। कुल सूत्र 357 हैं। इसी को मोक्षशास्त्र भी कहते हैं। दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों को समान रूप से मान्य है। जैन आम्नाय में यह सर्व प्रधान सिद्धान्त ग्रन्थ माना जाता है। जैन दर्शन प्ररूपक होने के कारण यह जैन बाइबल के रूप में समझा जाता है। इसके मंगलाचरण रूप प्रथम श्लोक पर ही आ0समन्तभद्र (ई.श.2) ने आप्तमीमांसा (देवागम स्तोत्र) की रचना की थी, जिसकी पीछे अकलंकदेव (ई0620-680) ने 800 श्लोक प्रमाण अष्टशती नामकी टीका की। आगे आ0विद्यानन्दि नं.1 (ई0775-840) ने इस अष्टशती पर भी 8000 श्लोक प्रमाण अष्टसहस्री नामकी व्याख्या की। इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ पर अनेकों भाष्य टीकाएं उपलब्ध हैं–
- श्वेताम्बराचार्य वाचकउमास्वामीकृततत्त्वार्थाधिगम भाष्य (संस्कृत);
- आ0समन्तभद्र (ई02) विरचित 9600 श्लोक प्रमाण गन्धहस्ति महाभाष्य;
- श्री पूज्यपाद (ई0श050) विरचित सर्वार्थसिद्धि;
- योगीन्द्र देव विरचित तत्त्व प्रकाशिका (ई0श06)
- श्री अकलंक भट्ट (ई0620-680) विरचित तत्त्वार्थ राजवार्तिक;
- श्री अभयनन्दि (ई.श.10-11) विरचित तत्त्वार्थ वृत्ति;
- श्री विद्यानन्दि (ई0775-840) विरचित श्लोकवार्तिक।
- आ0शिवकोटि (ई0श011) द्वारा रचित रत्नमाला नामकी टीका।
- आ0भास्करनन्दि (ई0श012) कृत सुखबोध नामक टीका।
- आ0बालचन्द्र (ई0श013) कृत कन्नड़ टीका।
- विबुधसेनाचार्य (?) विरचित तत्त्वार्थ टीका।
- योगदेव (ई01579) विरचित तत्त्वार्थ वृत्ति।
- प्रभाचन्द्र नं08 (ई01432) कृत तत्त्वार्थ रत्नप्रभाकर
- भट्टारक श्रुतसागर (वि.श.16)कृत तत्त्वार्थ वृत्ति (श्रुत सागरी)।
- द्वितीय श्रुतसागर विरचित तत्त्वार्थ सुखबोधिनी।
- पं0सदासुख (ई01793-1863) कृत अर्थ प्रकाशिका नाम टीका। (विशेष देखें परिशिष्ट - 1)। उपर्युक्त मूल तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार प्रभाचन्द्र द्वारा रचित द्वितीय रचना (ती./3/300)।