तदुभयप्रायश्चित्त
From जैनकोष
प्रायश्चित्त के नौ भेदों में तीसरा भेद । इसमें आलोचना तथा प्रतिक्रमण दोनों से चित्त की शुद्धि होती है । हरिवंशपुराण 64.32-34
प्रायश्चित्त के नौ भेदों में तीसरा भेद । इसमें आलोचना तथा प्रतिक्रमण दोनों से चित्त की शुद्धि होती है । हरिवंशपुराण 64.32-34