त्रैराशिकवाद
From जैनकोष
नन्दिसूत्र/239 गोशालप्रवर्तिना आजीविका: पाखण्डिनस्त्रेराशिका उच्यन्ते। कस्मादिति चेदुच्यते, इह ते सर्वं वस्तु त्रयात्मकमिच्छन्ति। तद्यथा जीवोऽजीवो जीवाजीवाश्च, लोका: अलोका: लोकालोकाश्च, सदसत्सदसत् । नयचिन्तायामपि त्रिविधं नयमिच्छन्ति। तद्यथा, द्रव्यास्तिकं पर्यायास्तिकमुभयास्तिकं च। ततस्त्रिभी राशिभिश्चरन्तीति त्रैराशिका:। =गोशाल के द्वारा प्रवर्तित पाखण्डी आजीवक और त्रैराशिक कहलाते हैं। ऐसा क्यों कहलाते हैं ? क्योंकि वे सर्व ही वस्तुओं को त्र्यात्मक मानते हैं। इस प्रकार है जैसे कि–जीव अजीव व जीवाजीव; लोक, अलोक व लोकालोक; सत् असत् व सदसत् । नय की विचारणा में तीन प्रकार की नय मानते हैं। वह इस प्रकार–द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक व उभयार्थिक। इस प्रकार तीन राशियों द्वारा चरण करते हैं, इसलिए त्रैराशिक कहलाते हैं। ध.1/1,1,2/गा.76/112 अट्ठासी-अहियारेसु चउण्हमहियाराणमत्थि णिद्देसो। पढमो अबंधयाणं विदिओ तेरासियाणं बोद्धव्वो।76। =(दृष्टिवाद अंग के) सूत्र नामक अर्थाधि के अठासी अर्व्वाधिकारों का नामनिर्देश मिलता है। ...उसमें दूसरा त्रैराशिक वादियों का जानना।