नाम निक्षेप
From जैनकोष
- नाम निक्षेप का लक्षण
स.सि./1/5/17/4 अतद्गुणे वस्तुनि संव्यवहारार्थं पुरुषकारान्नियुज्यमानं संज्ञाकर्म नाम। =संज्ञा के अनुसार जिसमें गुण नहीं है ऐसी वस्तु में व्यवहार के लिए अपनी इच्छा से की गयी संज्ञा को नाम (नाम निक्षेप) कहते हैं। (स.सा./आ./13/क. 8 की टीका); (पं.ध./पू./742)।
रा.वा./1/5/1/28/14 निमित्तादन्यन्निमित्तं निमित्तान्तरम्, तदनपेक्ष्य क्रियमाणा संज्ञा नामेत्युच्यते। यथा परमैश्वर्यलक्षणेन्दनक्रियानिमित्तान्तरानपेक्षं कस्यचित् इन्द्र इति नाम। =निमित्त से जो अन्य निमित्त होता है उसे निमित्तान्तर कहते हैं। उस निमित्तान्तर की अपेक्षा न करके [अर्थात् शब्द प्रयोग के जाति, गुण, क्रिया आदि निमित्तों की अपेक्षा न करके लोक व्यवहारार्थ (श्लो.वा.)] की जाने वाली संज्ञा नाम है। जैसे–परम ऐश्वर्यरूप इन्दन क्रिया की अपेक्षा न करके किसी का भी ‘इन्द्र’ नाम रख देना नाम निक्षेप है। (श्लो.वा.2/1/5/श्लो.1-10/169); (गो.क./मू./52/52); (त.सा./1/20) - नाम निक्षेप के भेद
ष.खं.13/5,3/सूत्र 9/8 जो सो णामफासो णाम सो जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा जीवस्स च अजीवस्स च जीवस्स च अजीवाणं च जीवाणं च अजीवस्स च जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णाम कीरदि फासे त्ति सो सव्वो णामफासो णाम। =जो वह नाम स्पर्श है वह–एक जीव, एक अजीव, नाना जीव, नाना अजीव, एक जीव एक अजीव, एक जीव नाना अजीव, नाना जीव एक अजीव, तथा नाना जीव नाना अजीव; इनमें से जिसका ‘स्पर्श’ ऐसा नाम किया जाता है वह सब नाम स्पर्श है। नोट–(यहां स्पर्श का प्रकरण होने से ‘स्पर्श’ पर लागू कर नाम निक्षेप के भेद किये गये हैं। पु.9 में ‘कृति’ पर लागू करके भेद किये गये हैं। इसी प्रकार अन्यत्र भी जान लेना। धवला में सर्वत्र प्रत्येक विषय में इस प्रकार निक्षेप किये गये हैं।) (ष.खं.9/4,1/सू.51/246); (ध.15/2/4)। - अन्य सम्बन्धित विषय
- नाम निक्षेप शब्दस्पर्शी है।–देखें नय - I.5.3।
- नाम निक्षेप का नयों में अर्न्भाव।–देखें निक्षेप - 2,3।
- <a name="3.3" id="3.3"></a>नाम निक्षेप व स्थापना निक्षेप में अन्तर।–देखें निक्षेप - 4।