निष्क्रांति
From जैनकोष
गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं में अड़तालीसवीं क्रिया । इसमें तीर्थंकर संसार से विरक्त होने पर गृहस्थ का दायित्व अपने पुत्र को सौंपते हैं । इस समय लौकान्तिक देव आते हैं । इन्हें पालकी में बैठाकर पहले कुछ देर तो मनुष्य फिर देव वन में ले जाते हैं । दीक्षित होने पर देव उनकी पूजा करते हैं । महापुराण 38.62, 266-294