परिग्रहपरिमाणुव्रत
From जैनकोष
क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, दासी-दास, पशु, आसन, शयन, वस्त्र और भाण्ड इन दस प्रकार के परिग्रहों का लोभरूप पाप के विनाशनार्थ किसी निश्चित संख्या में परिमाण करना । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.45-47
क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, दासी-दास, पशु, आसन, शयन, वस्त्र और भाण्ड इन दस प्रकार के परिग्रहों का लोभरूप पाप के विनाशनार्थ किसी निश्चित संख्या में परिमाण करना । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.45-47