भवविचय
From जैनकोष
धर्मध्यान के दस भेदों में सातवाँ भेद । चारों गतियों में श्रमण करने वाले जीवों को मरने के बाद जो पर्याय प्राप्त होती है उसे भव कहते हैं । यह भव दु:खरूप है― ऐसा चिन्तन करना भवविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.47, 52
धर्मध्यान के दस भेदों में सातवाँ भेद । चारों गतियों में श्रमण करने वाले जीवों को मरने के बाद जो पर्याय प्राप्त होती है उसे भव कहते हैं । यह भव दु:खरूप है― ऐसा चिन्तन करना भवविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.47, 52