मनोनुगामिनी
From जैनकोष
एक विद्या । यह छ: वर्ष से भी अधिक समय की कठिन साधना के बाद सिद्ध होती है । विशिष्ट तप के द्वारा इसके पूर्व भी इसकी सिद्धि हो जाती है । दधिमुख नगर के राजा की तीन पुत्रियों—चतुर्लेखा, विद्युत्प्रभा और तरंगमाला ने इसे हनुमान की सहायता से सिद्ध किया था । पद्मपुराण 51.25-40