मित्रानुराग
From जैनकोष
सल्लेखनाव्रत का पाँचवाँ अतिचार-सम ?? के समय मित्रों में किये अथवा उनके दिये गये प्रेम की स्मृति करना । हरिवंशपुराण 58. 184
सल्लेखनाव्रत का पाँचवाँ अतिचार-सम ?? के समय मित्रों में किये अथवा उनके दिये गये प्रेम की स्मृति करना । हरिवंशपुराण 58. 184