मुक्त
From जैनकोष
(1) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 113
(2) जीवों का एक भेद । ये अष्टकर्मों से रहित, सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से विभूषित, सुख के सागर, सर्व दुःखों से रहित लोकाग्रवासी, सर्व बाधाओं से विमुक्त, ज्ञानशरीरी और अनन्त गुणसम्पन्न होते हैं । इन्हें अन्तराय से रहित अतुल और अनन्त सुख होता है । इनमें अचलत्व, अक्षयत्व, अव्याबाधत्व, अनन्तज्ञानत्व, अनन्तदर्शनत्व, अनन्तवीर्यता, अनन्तसुखता, नीरजस्त्व, निर्मलत्व, अच्छेद्यत्व, अभेद्यत्व, अक्षरत्व, अप्रमेयत्व, अगौरवलाघव, अक्षोभ्यत्व, अविलीनत्व, परमसिद्धता ये गुण भी होते हैं । महापुराण 24.88-89, 42.97-107, 67.5, 10, पद्मपुराण 105.148, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.33-35