लोकानुप्रेक्षा
From जैनकोष
बारह भावनाओं में दसवीं भावना । इसमें लोक की स्थिति, विस्तार, वहाँ के निवासियों के सुख-दुःख, तथा इसके अनादि अनिधन अकृत्रिम आदि स्वरूप का बार-बार चिन्तन किया जाता है । पांडवपुराण 25. 108-110 वीरवर्द्धमान चरित्र 11.88-112
बारह भावनाओं में दसवीं भावना । इसमें लोक की स्थिति, विस्तार, वहाँ के निवासियों के सुख-दुःख, तथा इसके अनादि अनिधन अकृत्रिम आदि स्वरूप का बार-बार चिन्तन किया जाता है । पांडवपुराण 25. 108-110 वीरवर्द्धमान चरित्र 11.88-112