अंड
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या २/३३/१८९. यन्नखत्वक्सदृशमुपात्तकाठिन्यं शुक्रशोणितपरिवरण परिमण्डलं तदण्डम्।
= जो नखकी त्वचा के समान कठिन है, गोल है, और जिसका आवरण शुक्र और शोणित से बना है उसे अण्ड कहते हैं।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या २/३३/२/१४३/३२) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ८४/२०७)