अजीव
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या /१/४/१४ तद्विपर्ययलक्षणोऽजीवः।
= जीव से विपरीत लक्षणवाला अजीव है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या /५/२/२६६ तेषां धर्मादीनाम् `अजीव' इति सामान्यसंज्ञा जीवलक्षणाभावमुखेन प्रवृत्ता।
= धर्मादिक द्रव्यों में जीव का लक्षण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अजीव यह सामान्य संज्ञा है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १२७ यत्र पुनरुपयोगसहचरिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया अभावाद् बहिरन्तश्चा चेतनत्वमवतीर्णं प्रतिभाति सोऽजीव।
= जिसमें उपयोग के साथ रहनेवाली, यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनत्व अवतरित प्रतिभासित होता है, वह अजीव है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५० इत्युक्तलक्षणोपयोगश्चेतना च यत्र नास्ति स भवत्यजीव इति विज्ञेयम्।
= इस प्रकार की उक्त लक्षणवाली चेतना जहाँ नहीं है वह अजीव होता है ऐसा जानना चाहिए।
१. अजीव के दो आध्यात्मिक भेद
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ तच्च द्विविधम्। जीवसंबन्धमजीवसंबन्धं च।
= और वह दो प्रकार का है - जीव सम्बन्ध और अजीव सम्बन्ध।
२. अजीव के उपर्युक्त भेदों के लक्षण
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार संख्या १/३०/३३ देहरागादिरूपं जीवसंबन्धं, पुद्गलादिपञ्चद्रव्यरूपमजीवसंबन्धमजीवलक्षणम्।
= देहादि में राग रूप तो जीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है और पुद्गलादि पंचद्रव्य रूप अजीव सम्बन्ध अजीव का लक्षण है।
३. पाँच अजीव द्रव्यों का नाम निर्देश
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय संख्या ५/१,३९ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः १। कालश्च। ३९;
= धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य पुद्गल द्रव्य और काल द्रव्य ये पाँच अजीवकाय हैं।
(प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १२७) (द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १५/५०)।
४. अन्य सम्बन्धित विषय
• धर्मादि द्रव्य – देखे वह वह नाम ।
• जीव को कथंचित् अजीव कहना – देखे जीव १/३।
• अजीव-विचय धर्मध्यान का लक्षण – देखे धर्मध्यान १।
• षट् द्रव्यों में जीव अजीव विभाग – देखे द्रव्य. ३।