स्त्री परिषह
From जैनकोष
स.सि./9/9/422/11 एकान्तेष्वारामभवनादिप्रदेशेषु नवयौवनमदविभ्रममदिरापानप्रमत्तासु प्रमदासु बाधमानासु कूर्मवत्संवृतेन्द्रियहृदयविकारस्य ललितस्मितमृदुकथितसविलासवीक्षणप्रहसनमदमन्थरगमनमन्मथशरव्यापारविफलीकरणस्य स्त्रीबाधापरिषहसहनमवगन्तव्यम् । = एकान्त ऐसे बगीचा तथा भवनादि स्थानों पर नवयौवन, मदविभ्रम और मदिरापान से प्रमत्त हुई स्त्रियों के द्वारा बाधा पहुँचाने पर कछुए के समान जिसने इन्द्रिय और हृदय के विकार को रोक लिया है तथा जिसने मन्द मुसकान, कोमल सम्भाषण, तिरछी नजरों से देखना, हँसना, मदभरी धीमी चाल से चलना और कामबाण मारना आदि को विफल कर दिया है उसके स्त्री बाधा परीषह जय समझनी चाहिए। (रा.वा./9/9/13/610/7); (चा.सा./116/1)।